रे पथिक! तू कौन ?
बोल तू क्यूँ मौन?
बोल तू क्यूँ मौन?
क्या तोड़ कर आया कोई भीषण कारा ?
या..स्वजनों ने तुम्हे बिसारा....
है दार्शनिक या कर्त्तव्य समर में हारा?
रे पथिक तू कौन? बोल तू क्यूँ मौन?
क्यों न दे पाता तू अपना परिचय
क्यों छुपा रहा तू उर में अपने, जो तेरे अंतर में संचय
क्यों छुपा रहा तू उर में अपने, जो तेरे अंतर में संचय
उठ .....बैठ .....हिल-डोल.....
टोल अपने मन में फिर बोल. कुछ तो बोल.........
रे पथिक कुछ तो बोल.........
अधर शुष्क हैं अंतर की ज्वाला से
उठ ! दो घूंट पी......... ले जल का प्याला ले .
क्या हाथ शरीर से विलग हुए ?
जो न उठते कुछ लेने को,
क्या स्वाभिमान तुझे रोकता ?
या..
हाथ तेरे उठते केवल देने को..
अन्धकार से दर कर भागा? या प्रदीप्त कर कोई तारा?
है दार्शनिक या कर्तव्य समर में हारा?.......
aabhaar
जवाब देंहटाएंumdaa prastuti
Bhai Girish ji, Namaskaar! aapki sadashyta hetu dhanyvaad...Aapne parha..mera utsaah vardhan huaa.. upar se aapka aasheesh..dhanyavaad....
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