कुल पेज दृश्य

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

kaagaz ke Jahaaj

वक्त की आंधी में न उडाओ 'कागज़ के जहाज' यारों ,
वक्त करता है रोटी की दरकार खाओ न 'खयाली पुलाव' यारों!


वक्त की आंधी उड़ा ले जाएगी ये 'ताश के महल'  ,
वक्त गुजर जाने पर अश्क न बहाओ यारों !
वक्त की इक ठोकर से बिखर जाएंगी ये 'रेट की ढऐरियाँ '
इन ढेरियों पर अपना कब्जा न जताओ  यारों!
मुफलिसी में गुजर रही हैं हजारों जिंदगियां.
सिर्फ रोटियाँ तुम ही भर पेट न खाओ यारों!

हम तो कागजों में खपा रहे हैं सर,
अपनी सियासती चालों में हमें न फंसाओ यारों!!!!!!!

                                         रमेश कुमार घिल्डियाल, कोटद्वार - उत्तराखंड        

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें