ओ सागर!
मरुथल की सी प्यास बुझा दो .....
विव्हल हो कर भरो अंक में,
पलकों में तुम हमें छुपा दो...
सदियों में तुम आज मिले हो
मरुथल की सी प्यास बुझा दो .....
विव्हल हो कर भरो अंक में,
पलकों में तुम हमें छुपा दो...
सदियों में तुम आज मिले हो
पल भर को यह समय रुका दो
मरुथल की सी प्यास बुझा दो...
शुक्ल पक्ष का पूर्ण चन्द्र तुम
मेरे मन में वन की ज्वाला
ओ, पूर्ण चन्द्र की शीतल किरनों!
मेरे मन की अगन बुझा दो.......
मरुथल की सी प्यास बुझा दो...
मरुथल की सी प्यास बुझा दो...
शुक्ल पक्ष का पूर्ण चन्द्र तुम
मेरे मन में वन की ज्वाला
ओ, पूर्ण चन्द्र की शीतल किरनों!
मेरे मन की अगन बुझा दो.......
मरुथल की सी प्यास बुझा दो...
तुम पथ-प्रदर्शक मैं थकित पथिक हूँ
मुझको कोई राह सुझा दो
तुम पारस मैं लौह खंड हूँ
खुद को मुझ से जरा छुआ दो....
मरुथल की सी प्यास बुझा दो...
विव्हल हो कर भरो अंक में, पलकों में तुम हमें छुपा दो...
मुझको कोई राह सुझा दो
तुम पारस मैं लौह खंड हूँ
खुद को मुझ से जरा छुआ दो....
मरुथल की सी प्यास बुझा दो...
विव्हल हो कर भरो अंक में, पलकों में तुम हमें छुपा दो...
manmohak hindi ki shabdaawali ke saath khoobsurat prastuti...
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