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बुधवार, 20 अप्रैल 2011

जीवन चक्र

हवाओं पे लगे हैं, हवाओं के पहरे,
आकर यहाँ पर कोई न ठहरे!


आकाश ने सूरज को बाँध लिया है,
धरती ने पानी को थाम लिया है!


चूल्हे में जलती लकड़ी की लपटें,
भूखी कोई मकड़ी शिकार पे झपटे!


पिक्चर की बातें करती सहेली,
सुलझती हो मानो जीवन की पहेली!


सड़क पर बैठा ये अँधा भिखारी,
यूँ बैठा है मानो बगुला शिकारी!


बूढ़े की लाठी बूढ़े का सहारा,
नदी की रेत नदी का किनारा !!!     

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