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रविवार, 24 अप्रैल 2011

जीवन स्वप्न

सुख को तुमने चाहा होगा,
दुःख तो मेरा अपना है !
मृत्यु अवश्यमभावी  है,
जीवन तो बस सपना है..!!

जाती धर्म औ दीन के दम पर
दंगे किस हित करते हो ?
सभी धरा पर रह जाएगा
वहां तो खाली चलना है!!

भूमि , धन  औ  स्त्री  को
क्यूँ जीवन का उद्देश्य बनाते!
सेवा भक्ति सुधार करो
जो भवसागर से तरना है !!

प्रेम, दया औ नेह की माला 
बिखर गई क्यूँ आज धरा पर?
छलता तू जो आज किसी को
ये खुद ही को तो छलना है!!

किस हित इतने साधन करता?
अपनों को दुःख दे-दे कर!
दो पल का विश्राम यहाँ है
फिर तो सबको चलना है!!

मृत्यु अवस्संभावी है
जीवन तो बस सपना है....................
   

7 टिप्‍पणियां:

  1. गहन चिन्तनयुक्त भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।

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  2. अच्छी कविता है भाई!..बधाई!
    देवेंद्र गौतम

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  3. बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति|

    जवाब देंहटाएं
  4. जाती धर्म औ दीन के दम पर
    दंगे किस हित करते हो ?
    सभी धरा पर रह जाएगा
    वहां तो खाली चलना है!!
    रमेश जी नमस्कार -बहुत सुन्दर रचना -सुन्दर अवाहन लोगों से -
    शुभ कामनाएं आप की हमारी ये बातें लोगों के कानो में जून रेंगने को विवश करें

    -आइये हमारे ब्लॉग पर भी अपने सुझाव व् समर्थन के साथ
    शुक्लभ्रमर ५

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  5. मृत्यु अवस्संभावी है
    जीवन तो बस सपना है.....

    दार्शनिकता से परिपूर्ण इस रचना के लिए हार्दिक बधाई...

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  6. haardik dhanywaad Dr. Sharad ji, 'bhramar' ji,PTV ji, Mulhid, gautam aur Varsha ji......

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