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रविवार, 24 अप्रैल 2011

क्या फिर गुलाम होना है?

सुनो...............
तुम्हारे मुर्देपन का फायदा 
उठाने वालों की जमात
बैठी है..
हर किसी ने
हर जगह
चप्पे-चप्पे पर
खोद डाली हैं
कब्रें...
इन्तजार....
की,...तुम किसकी
खोदी कब्र में गिरो?
किसके साथ हो पक्का
तुम्हारी आजादी/साँसों का
ठेका..
खूबसूरती से सजे 'गुलदस्ते' लिए
'शरीफ जल्लादों'
का हुजूम ...
हर गुलदस्ते में छुपी है
पैनी धार
हवा से भी
पतली धार
कोशिश....
हरकत करो.
मुर्दा जिस्म में
जान पैदा करो,
जोश  डालो और...
तुम्हारी साँसों पर 
कब्जा करने को तैयार
फिर से पैदा हो गए
'पुराने दो सौ साल'
इनकी जड़ों में 'दांडी' का नमक
डाल दो..
सर्द हिमाला का गर्म पानी
डाल दो ..ताकि..ये..
जंगली घास की तरह
फिर से न पैदा हो जाएं,
काबिज न हों
तुम पर
तुम्हें चूस लेने को.....

ये किसी पर ऊँगली उठाने का वक्त
नहीं है दोस्त....
उट्ठो और दिमागी जंग
की तैयारी करो....
 

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