सत्य अहिंसा की बाते तो नारों तक ही सीमित हैं !
चापलूस नाकारा तो राजकोष से बीमित हैं !!ग्यानी लोगो का नित अपमान यहाँ पर होता है !
अन्याय, न्याय की कुर्सी पर पैर पसारे सोता है !!
कल तक का वैभवशाली देश अपना वैभव खोता है !
भ्रष्ट राजनीती के फंदे में देश बिलख कर रोता है !!
जिसका यश गान धरा औ अम्बर जोर-शोर से गाते थे ,
जिसकी गौरवगाथा के आगे बड़े - बड़े झुक जाते थे !
तुम उसे स्वयं अन्धकार में ढकेल रहे हो रिश्वतखोरों,
जिसके पालित ज्ञान-मान-सम्मान सहित राह दिखाते जाते थे !!
धिक् - धिक् - धिक्कार तुम्हे , तुम देश बेचने वालों को !
शेर सरीखा समझा हमने तुम मूषक दिल वालों को !!
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