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रविवार, 1 मई 2011

मूषक दिल वालों को....

सत्य अहिंसा की बाते  तो  नारों  तक  ही  सीमित  हैं !
चापलूस  नाकारा  तो  राजकोष  से  बीमित  हैं !!
ग्यानी  लोगो  का  नित  अपमान  यहाँ  पर  होता  है !
अन्याय, न्याय  की  कुर्सी  पर  पैर  पसारे  सोता  है !!
कल  तक  का  वैभवशाली  देश  अपना  वैभव  खोता  है !
भ्रष्ट  राजनीती  के  फंदे  में  देश  बिलख  कर  रोता  है !!
जिसका  यश  गान  धरा औ अम्बर  जोर-शोर  से गाते थे ,
जिसकी  गौरवगाथा  के  आगे  बड़े - बड़े  झुक  जाते  थे !
तुम  उसे  स्वयं  अन्धकार  में  ढकेल रहे हो रिश्वतखोरों,
जिसके पालित ज्ञान-मान-सम्मान सहित राह दिखाते जाते थे !!
धिक् - धिक् - धिक्कार  तुम्हे , तुम  देश  बेचने  वालों  को !
शेर  सरीखा  समझा  हमने  तुम  मूषक  दिल  वालों  को !!
 

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