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शनिवार, 23 अप्रैल 2011

कुछ बिखरे मुक्तक ..कुछ शेर ...

इत्तनी सफाई से कर गया क़त्ल कातिल  कि खून 
उसके दस्त -ओ-कदम-पे रंगे हिना नजर आता है
क़ानून मांगता है आला-ए-कतल बतौर-ए-सुबूत

और खुद.........................इन्साफ से कतराता है..... 


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खुदा करे न उट्ठे किसी के सर से बाप का साया
है कौन जहां में खुशनसीब जो ऐसी किस्मत लेके आया


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कि पूछना उनका , मेरा हाल-ओ-खयालात
औ बढ़कर जाम देना मुझे
छूटना मेरे हाथ से तस्वीरे-हालत
औ उनका बढ़कर थाम लेना मुझे..........


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ढलती हुई शाम को सहारे चाहिए
गुजरते तूफ़ान को कनारे चाहिए
सुकून से गुजरे उम्र का ये आखरी पड़ाव
पास आइये जरा! काँधे फिर तुम्हारे चाहिए....


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तेरे शहर में बुतखाने..या
बुतखानो के शहर  में  तू
है काबिले सजदा हर बुत खाना
और   मेरी   नज़र   में  तू............


X)(X)(X)(X)(X)(X)(X)(X)(

तुमको पुष्पहार मिलें सारे जग का प्यार मिले
अश्रु मिलें मुझको ही सारे मुझको सारे अंगार मिले...
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जो तेरे हुश्न को आब देता है...
वो मेरा इश्क नहीं तो और क्या है?


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मेरे हृदय की आकांक्षा 
कोमल मन का निर्मलपन
पलकों पर ठहरे सपने 
सब परिणित हो तुझमे...

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कौन भरा कौन रीता है?
क्यूँ विष का प्याला पीता है?
डरता  है  सो  मरता  है?
अकड़ गया सो जीता है?


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बेसबब न हुआ करे आमद-ए-बादल
हर बूँद को तेरी खुशबुओं का सिला मिले......

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ज्यों-ज्यों उम्र की रेखा छुई जाती है
'जिन्दगी' मुट्ठी में बंद रेत .. हुई जाती है......

............................................रमेश कुमार घिल्डियाल...बी इ एल  कोटद्वार...

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