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शनिवार, 23 अप्रैल 2011

ग़ज़ल

बोसा रुख-इ-नाज़नी का लिया जो
हवा ने बार-बार...
झटका के जुल्फ को कहते हैं कि...
जमाना खराब है...


कदम मुबारक जो पढ़ गए चमन में
खिजा ने भी माना कि  गुल पुर-शबाब है.......


'वो'  मेरी गली से जो गुजरे, 
लोग अश-अश कर उट्ठे
किसी को लैला है,शीरीं है, सोहनी है 
कोई कहे ये तो नाज़ुक गुलाब है....


किस्मत....कि;  मेरे दर पे रुक गई वो गुलबदन
कहें कि;  लो आ गया मेरा मंजिल-ओ-मकाम है...


उनकी सोख अदाओं से मचल उट्ठे मेरे रकीब
कहे कि 'हसरत' तो बढ़ा ले गया अपनी दुकान है.....  

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