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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

Gunjan

मैं जितना तुमको प्यार करूँ 
वो उतना ही कम पड जाता है ..
माना सावन खूब बरसता है 
पर... भादों  भी  भरमाता है ..
तुम तो जानो, बेला चंपा रोज खिले
पर गूलर! जाने क्यूँ शर्माता है ?..

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