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सोमवार, 11 अप्रैल 2011

Mann Ka Panchi...

मन का पंछि आज़ाद हुआ रे
तोड़ के दैहिक कारा को!...
रोये कोई एक अकेला 
या रोता जग सारा हो!!  

पिंजरे के अन्दर की दुनिया
आहें भरना, घुट-घुट मरना
फिर भी पिंजरा प्यारा रे..
मन का पंछी आज़ाद...!!

पिंजरे-औ-पिंजरे के नाते 
सभी धरा पर रह जाते !
हो कोई दुश्मन या..
कोई हो प्यारा रे...!!
मन का पंची आज़ाद हुआ रे तोड़ के दैहिक कार को... 

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