नंगी सड़कों पर फौजी बूटों की खडखडाहट,
दौड़ते भागते इंसानों की चीख-दर-चीख !
औरतें!...दुध्मुहें बच्चों की जान की मांगती भीख!!
औरतें!...दुध्मुहें बच्चों की जान की मांगती भीख!!
अनदेखे अनजाने कठोर फौजी चेहरे...
ज़ालिम सरकार के ये ज़ालिम मोहरे...
रोटी के टुकड़े को तरसते ये भूखे लोग ..
पानी की बूंद-बूंद को तरसती ये साँसे...
खून में डूबते -उतराते ये अपने पराये.
दू .......र किसी गाँव में छिपे रोते-सिसकते बच्चे,
हाँ! ये भी हैं इन टूटते गिरते मकानों से कच्चे !
न जाने कब इधर भी आ टपकें ये दरिन्दे..
घबराकर भाग रहे इंसा जानवर औ परिंदे..
ढलती हुई शाम गहराते खौफनाक साए..
कहीं छलकते जाम, कोई होठों में प्यास लिए ही सो जाए ..
काश!.........कोई तो खुदा इनके बीच उतर आए......
काश!.........कोई तो खुदा इनके बीच उतर आए......
रमेश कुमार घिल्डियाल, बी.इ.एल, कोटद्वार-उत्तराखंड
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें