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सोमवार, 11 अप्रैल 2011

JANG

नंगी सड़कों पर फौजी बूटों की खडखडाहट,
दौड़ते भागते इंसानों की चीख-दर-चीख !
औरतें!...दुध्मुहें बच्चों की जान की मांगती भीख!!
अनदेखे अनजाने कठोर फौजी चेहरे...
ज़ालिम सरकार के ये ज़ालिम मोहरे...
रोटी के टुकड़े को तरसते ये भूखे लोग ..
पानी की बूंद-बूंद को तरसती ये साँसे...
खून में डूबते -उतराते ये अपने पराये.
दू .......र  किसी गाँव में छिपे रोते-सिसकते बच्चे,
हाँ! ये भी हैं इन टूटते गिरते मकानों से कच्चे !
न जाने कब इधर भी आ टपकें ये दरिन्दे..
घबराकर भाग रहे इंसा जानवर औ परिंदे..
ढलती हुई शाम गहराते खौफनाक साए..
कहीं छलकते जाम, कोई होठों में प्यास लिए ही सो जाए ..
काश!.........कोई तो खुदा इनके बीच उतर आए......
                                                          रमेश कुमार घिल्डियाल, बी.इ.एल, कोटद्वार-उत्तराखंड
                 

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