मैं कैसे तुमको इन मोतियों का मोल दूँ?
चाहता हूँ सारे पट आज मन के खोल दूँ ...
वो जो बीती काली रात है....
सच मानो!
ये उजाला उसकी ही सौगात है !
अंतस को उर्जित करते कोमल एहसासों को
जीवन के मीठे-कडुवे आभासों को
उसके दुखसे आज उखडती मेरी साँसों को
उसके जादुई बोलों में डूबे परिहासों को
कब तक कोई रोक सकेगा
दरिया के यौवन का होना
तेरे मन की धरती पर
मखमल का एक बिछोना
जिसपर तेरे केशों की छाया
में बच्चे सा सोना
औ पतझड़ में भी तेरी
आँखों में सावन का होना
तू तरिप्त हुई इन प्यारे
भावों औ ओस कनो से
चाहता हूँ सारे पट आज मन के खोल दूँ ...
वो जो बीती काली रात है....
सच मानो!
ये उजाला उसकी ही सौगात है !
अंतस को उर्जित करते कोमल एहसासों को
जीवन के मीठे-कडुवे आभासों को
उसके दुखसे आज उखडती मेरी साँसों को
उसके जादुई बोलों में डूबे परिहासों को
कब तक कोई रोक सकेगा
दरिया के यौवन का होना
तेरे मन की धरती पर
मखमल का एक बिछोना
जिसपर तेरे केशों की छाया
में बच्चे सा सोना
औ पतझड़ में भी तेरी
आँखों में सावन का होना
तू तरिप्त हुई इन प्यारे
भावों औ ओस कनो से
मैं भी तो शीतल हो जाता हूँ
तेरे चन्दन, मधु-भाषों से ... रमेश घिल्डियाल
तेरे चन्दन, मधु-भाषों से ... रमेश घिल्डियाल
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