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सोमवार, 4 जुलाई 2011

मैं आउंगा ....

मैं व्यक्त न कर पाता अपने इन प्रेम पगे एहसासों को
मैं कैसे चित्रित करूँ गगन में अपने इन विश्वासों को
नीर भरे इन नैनो ने देखा बिखरे खेल - तमाशों को
धीरे - धीरे दूर करेंगे विरहा के मधुमासों को ................

सदियाँ कितनी बीत गई हों ये मोती आँखें रीत गई हों
मिलन हमारा निश्चित होगा,  जब प्रीत हमारी जीत गई हो
आज समंदर रोक न पाए, पर्वत कोई टोक न पाए
मैं आता हूँ ..आता हूँ मैं .... चाहे कोई भीत नई हो

मैं हरदम  तेरे पास रहा हूँ बनकर के विस्वास रहा हूँ बोझिल पलकें रूकती सासें तेरी हिम्मत औ छोटी सी आस रहा हूँ
देख हवा में दोल रही ये तेरी अलकें, भीगी पलके, बोझिल  पलकें 
स्पर्श अनोखा इन गालों पर जिनपर मोती बन गए आंसू ढलके ........................................... 

4 टिप्‍पणियां:

  1. above lines are written on Gunjan Goyal's Poem on 06 july 2011..thanx to Gunjan for a gud poem dat inspired me..Ramesh Ghildiyal, Kotdwar....

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  2. मैं व्यक्त न कर पाता अपने इन प्रेम पगे एहसासों को
    मैं कैसे चित्रित करूँ गगन में अपने इन विश्वासों को
    नीर भरे इन नैनो ने देखा बिखरे खेल - तमाशों को
    धीरे - धीरे दूर करेंगे विरहा के मधुमासों को ....

    सुंदर प्रेमपगे ....आशावादी भाव

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