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शनिवार, 25 जून 2011

तुम चाहो चुप चाप लौट जाना बिलकुल खामोशी के साथ


तुम चाहो चुप चाप लौट जाना, बिलकुल खामोशी के साथ
पर ये याद रखना की खामोशी की भी आवाज होती है ...
कितना भी दूर जाओ तुम, धड़कने बिल्कुल पास होती हैं .
तुम शब्द बन कर मेरे होटों से लग जाना हमनशीं .
ये कौन शै है? जो शब्दों को सुरों की चासनी में भिगोती है  ..


मोम - मोम तू होजा, फिर भी तेरा अस्तित्व बचा रहेगा ..
रूप का बाज़ार सजा, तो  बस! ऐसा ही ये सजा रहेगा ..
 गढ़ना- ढलना शब्दों में, औ नज्मो का तू रूप लिए
अंगारों से बोल दहकते, चेहरे पर भादों की धूप लिए 
मेरे आँगन की गौरैया सी, दाना चुगने आजाना तुम 
सावन के मेघों सा, उमड़ - घुमड़  बरसाना  तुम ....

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना लिखी है आपने!

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  2. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  3. Dhanyawaad sabhi doston ko...jinhone parha aur saraha....aap hi mere prerna srot ho...

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