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गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

tum ho kaun?

ओ रूपसी! तुम हो कौन?
सागर सी गहराई लिए!
आँखों में है विरह वेदना, 
कुछ कहती सी फिर भी मौन!

ओ रूपसी! तुम हो कौन?........................

नहीं कभी चंचलता देखि,
सरिता सी निर्मलता देखि!
तुमको असीम सौंदर्य प्राप्त,
सुन्दर वदन किन्तु उदासी व्याप्त!

ओ रूपसी! तुम हो कौन?..........................

कहाँ तुम्हारी मुस्कान खो गई,
आँखें क्यूँ वीरान हो गई !
कहाँ कमल सा मंद हास,
प्रात ही क्यूँ कमलिनी सो गई?!    

3 टिप्‍पणियां:

  1. Bade bhai..aadab...surprisingly ur presrnt here in blog...abhi to post ki aur turant tippanni..waah bhai waah...dheron dhanwad...

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  2. रमेश भाई
    नमस्कार!
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और उत्साह-वर्धन के लिए आपका आभार, आपका फोल्लोवर बन गया हूँ सो अब आना जाना लगा रहेगा!
    आप भी आते रहिएगा, आपकी रचना के बारे में क्या कहूं, बहुत ही दिल से लिखी हुई रचना लगती है, आशा करता हूँ की आपकी तलाश ख़त्म हो और आपको पता चले की वो रूपसी कौन है!
    आपका,
    सुरेन्द्र "मुल्हिद"

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