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रविवार, 18 दिसंबर 2011

जो गुजर गया उसे भूल जा,  जो मिल गया उसे चूम ले!
शाम सुहानी अब हो चली, लग जा गले,   आ झूम ले .....

 दर्द सभी तो पाले हैं, गहरे दिल के छाले हैं
 बहारें फिर से लौटी हैं, आ चमन में संग घूम ले ....

  जख्मों औ आहों का दोस्त! बड़ा ही लम्बा खाता है...
  अपनी भी किस्मत का देखो! ग़म से गहरा नाता है...

 दीवारों पर खिची लकीरें, कोई जरूर मिटाता है
  पर दिल के जख्मो को तो, बिरला ही भर पाता है

 घृणा, द्वेष औ चालाकी तो दुनियावी ताबीरें हैं
 आदर, अनुराग, प्रेम-प्यार कुदरत की जागीरें हैं..

 अपनों को ही ठग पाते हैं ये दुनिया वाले, दोस्त सुनो!
सोचो-समझो,विचार करो, तब जाकर एक दोस्त  चुनो ....


अपने उर में जो ज्वालाओ को पाल रहे हैं दोस्त सुनो
 नफरत औ गुस्से को घर में वो ढाल रहे हैं दोस्त सुनो!                 रमेश घिल्डियाल 

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