तुम अंजुरी भर हंस दो
आँचल मैं पसारूं ,
झुकी पलकें बंद सीप में
मोती सा यौवन मैं निहारूं.......
तुम अंजुरी भर हंस दो..................................
हवा में तैरती समर्पण की
मादक सुगंध
बंधन खोल दो
गेसू घनेरे मैं संवारूं
तुम अंजुरी भर हंस दो..................................
मन, मयूर पंखी हुआ
सुन सांस की सरगम तेरी
दिन प्यार के अब हम सहेजें
नीरस अतीत तुम बिसारो
नीरव अतीत अब मैं बिसारूँ .....
तुम अंजुरी भर हंस दो, आँचल मैं पसारूं
झुकी पलकें बंद सीप में मोती सा यौवन मैं निहारूं.............
झुकी पलकें बंद सीप में मोती सा यौवन मैं निहारूं.............
रमेश कुमार घिल्डियाल बी.ई.एल कोटद्वार-उत्तराखंड
vaah rmesh bhaai aapto chhupe rustam hain bhtrin rchnaa ke liyen bdhaai. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंkya baat hai sir very good
जवाब देंहटाएंdhanyvaad....
जवाब देंहटाएंहवा में तैरती समर्पण की
जवाब देंहटाएंमादक सुगंध
बंधन खोल दो
गेसू घनेरे मैं संवारूं
तुम अंजुरी भर हंस दो......
ये अंजुरी भर हँसी मुबारक आपको रमेश जी ..
प्रेम रस में भीगी- भीगी सी मादक कविता ....
दिल में उन्माद सी पैदा करतीं हैं ...
बहुत सुंदर ....!!
'heer' ne 'keer' ko bheji hasee
जवाब देंहटाएंkeer hai badaa hi khush nasheen..
aapke man ko chhoo gai kavita..
baalpan se sayaani ho gai kavirta...Thanx...